कार्तिक पूर्णिमा की पौराणिक कथा/इसलिए भगवान शिव को कहा जाता है त्रिपुरारी

593
Views

कार्तिक पूर्णिमा की पौराणिक कथा/इसलिए भगवान शिव को कहा जाता है त्रिपुरारी - पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस हुआ करता था। उसके तीन पुत्र थे - जिनके नाम तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली थे भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया था जिसके कारण तारकक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी और क्रोधित हुए।

तीनों राक्षसों ने मिलकर ब्रह्माजी से अमरता का वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्माजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो। तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उनसे , इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।

 

तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके। एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण बने। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।

तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए। इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।

इस दिव्या रथ की हर एक चीज देवताओ से ही बनी थी। चन्द्रमा देव और सूर्य देव से रथ के पहिये बने थे। इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चार घोड़े बने थे। हिमालय राज धनुष और शेष नाग धनुष की प्रतंच्या बने थे। भगवान् शिव स्वम् बाण बने और बाण की नोक अग्नि देव जी बने थे। इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव।

स्वम् भगवानो से बनें इस रथ की और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया। इसी वध के बाद से ही भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को ही हुआ था , इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाने लगा।

 

कार्तिक माह में भगवान श्री हरि की पूजा में तुलसी चढ़ाने का फल 10,000 गोदान के बराबर माना गया है. तुलसी नामाष्टक का पाठ करने और सुनने से लाभ दोगुना हो जाता है।

 

तुलसी का पौधा हमेशा से आस्था का केंद्र रहा है। तीज - त्यौहार हो या पूजा - पाठ हर काम में इस पवित्र पौधे की पत्तियों को इस्तेमाल किया जाता है। विशेषकर कर कार्तिकमहीने में तुलसी का महत्व बढ़ जाता है। एक साल में 15 पूर्णिमाएं आती हैं। अधिकमास या मलमास में ये संख्या 16 हो जाती है लेकिन इन सभी में कार्तिक की पूर्णिमा सबसे उत्तम संयोग लेकर आती है। 

तुलसी के पौधे को मां लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। माना जाता है कि जिस घर में तुलसी होती है वहां पर मां लक्ष्मी का वास होता है। तुलसी का पौधा घर में आने वाली  नेगेटिव एनर्जी को रोकने के साथ-साथ रोगों के नाश करने में भी मदद करता है। पुराणों के अनुसार जिस घर पर कोई विपत्ति आने वाली होती है उस घर से सबसे पहले लक्ष्मी यानी तुलसी चली जाती है या सूख जाती है। 

========================================================================

Article Posted By: Manju Kumari

Work Profile: Hindi Content Writer

Share your feedback about my article.

 

 

0 Answer

Your Answer



I agree to terms and conditions, privacy policy and cookies policy of site.

Post Ads Here


Featured User
Apurba Singh

Apurba Singh

Member Since August 2021
Nidhi Gosain

Nidhi Gosain

Member Since November 2019
Scarlet Johansson

Scarlet Johansson

Member Since September 2021
Mustafa

Mustafa

Member Since September 2021
Atish Garg

Atish Garg

Member Since August 2020

Hot Questions


Om Paithani And Silk Saree



Quality Zone Infotech



Sai Nath University


Rampal Cycle Store



Om Paithani And Silk Saree



Quality Zone Infotech



Kuku Talks



Website Development Packages