जीवन में खुश कैसे रहें | How To Be Happy In Life

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जीवन में खुश कैसे रहें | How to be happy in life - किसी गांव में एक सुपेष नाम का एक व्यक्ति रहता था। सुपेष रुई बुनने का काम करता था। वह बड़ा महंती था। सुपेष हमेशा खुश रहता था लोग उसके भाग्य से बहुत ईर्ष्या करते थे उसे अक्सर लोग सफ़ेद भूत कह कर चिढ़ाते थे। क्योकि काम करते समय उसे बहुत पसीना आता था। और रुई धुनते समय रुई के छोटे - छोटे फोये उसके शरीर से चिपक जाते थे। इसीलिए उसका नाम सफ़ेद भूत पड़ गया था। बच्चे भी उसे सफेद भूत कहकर चिढ़ाते थे।

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जब भी ऐसा होता तो वह बनावटी क्रोध दिखाकर चिढ़ाने वाले लोगो के पीछे भागता। लेकिन कुछ दूर भागकर हसंता हुआ वापस जाता। उसे लोगो के छिड़ने पर बड़ा मज़ा आता था। गुस्सा तो वो दिखावे के लिए करता था। जिस दिन उसे कोई चिढ़ाता तो उसे बहुत ही दुःख होता था। अक्सर लोग उससे पूछते की भाई सुपेष तुम इतने मस्त और सुखी कैसे रहते हो। और वह हंसकर कहता की मैं किसी चीज की इच्छा  ही नही करता।तभी तो सुखी रहता हूँ। एक दिन एक आदमी उसके पास आया।

 

फिर वह सुपेष से जिद करके पूछने लगा की भाई सुपेष तुम्हारी मस्ती का राज क्या है ? इस जमाने में भी तुम इतने खुश और मस्त कैसे रह लेते हो। पहले तो सुपेष ने उसे बहुत टरकाने की बहुत कोशिस की। लेकिन जब वह आदमी हाँथ धो कर पीछे ही पड़ गया तो सुपेष ने उसे अपना रहश्य बताया उसने कहा की एक दिन रुई धुनते - धुनते मेरा धनुष टूट गया मेरा काम बंद हो गया इसलिए मैं लकड़ी लेने जंगल में चला गया। मुझे एक पेड़ दिखाई दिया। जिसकी लकड़ी मुझे ठीक दिखाई दी।

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मैंने पेड़ के पास जाकर उसके तने पर कुल्हाड़ी मार दी जैसे ही कुल्हाड़ी लगी पेड़ से आवाज आई। सुपेष भाई मुझे मत काटो। पहले तो मुझे लगा की ये मेरा भरम है भला पेड़ भी का ही बोलते है। मैंने फिर पेड़ को काटना शुरू कर दिया। भाई सुपेष मुझे मत काटो। पेड़ की आवाज तेज होती चली गयी लेकिन मैंने पेड़ को काटना बंद नहीं किया। तब फिर आवाज ने मुझसे प्रार्थना की की सुपेष भाई तुम जो चाहो वो मांग लो पर मुझे मत काटो। तुम चाहो तो इस देश का मैं राज - काज भी दे सकता हूँ।

 

मैंने वृक्ष देव से कहा की हे वृक्ष देव मुझे राज नहीं चाहिए मैं मेहनत से काम करना और ईमानदारी से जीना चाहता हूँ इसलिए मुझे दो हाँथ और पीछे की तरफ दो आँख और दे दीजिये। वृक्ष देव ने मुझे मुँह माँगा वरदान दे दिया।जब मैं चार हाँथ और चार आँख लेकर गांव में पहुंचा तो लोगो ने मुझे प्रेत समझा और मुझे पत्थरो से मारा। जो भी देखता वही मुझे पत्थर से मारता। कुछ लोग मुझे देखकर डर गए थेऔर जब मैं अपने घर में पंहुचा तो मेरी पत्नी भी मुझे देखकर डर गयी। उसने भी मुझे प्रेत समझा और दूसरे के घर में भाग गयी।

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मेरा तो पत्थरो की छोट से पहले ही बुरा हाल था। अब मेरी समझ में नहीं आ रहा था की मैं क्या करू ?फिर मैं वापस जंगल में गया और मैंने वृक्ष देव से प्रार्थना की की हे वृक्ष दे मेरी axtra दो हाथ और दो आखे वापस ले लो। उस देव को मेरी हालत पर दया गयी फिर उसने मुझे पहले जैसा कर दिया। तब से मैंने सबक लिया की मनुष्य को ज्यादा इच्छाये नहीं करनी चाहिए। मनुष्य की जितनी इच्छाये काम होगी उतना ही अधिक खुश रहेगा। बस यही मेरा मस्ती का राज है।

 

मैं तो रुई धुनते - धुनते सफेद बहुत ही रहना चाहता हूँ। इच्छाओं का कम होना ही जीवन में सुखी रहना ही है। इस दुनिया में सभी लोग अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए दिन - रात मेहनत कर रहे है। लेकिन उनकी जबक इच्छा पूरी हो जाती है तो तुरंत ही दूसरी इच्छा जाग जाती है। तीसरी और फिर चौथी। इसलिए कहा जाता है की आपकी संतुष्टि ही सबसे बड़ा धन है। सुखी जीवन जीने की बस यही एक कला है। कभी किसी चीज की अधिक इच्छा मत करो कभी दुसरो के उप्पर आधिक निर्भय मत रहो।                                    

    

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